What Does Shodashi Mean?

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The Mahavidyas can be a profound expression of your divine feminine, Just about every symbolizing a cosmic perform and a route to spiritual enlightenment.

अष्टैश्वर्यप्रदामम्बामष्टदिक्पालसेविताम् ।

कामेश्यादिभिरावृतं शुभ~ण्करं श्री-सर्व-सिद्धि-प्रदम् ।

She's honored by all gods, goddesses, and saints. In some spots, she is depicted sporting a tiger’s skin, using a serpent wrapped around her neck and a trident in a single of her arms even though another retains a drum.

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥८॥

लक्ष्मीशादि-पदैर्युतेन महता मञ्चेन संशोभितं

ईक्षित्री सृष्टिकाले त्रिभुवनमथ या तत्क्षणेऽनुप्रविश्य

सेव्यं गुप्त-तराभिरष्ट-कमले सङ्क्षोभकाख्ये सदा ।

It is actually want that turns the wheel of karma,  Which holds us in duality.  It is actually Shodashi who epitomizes the  burning and sublimation of such wishes.  It really is she who will allow the Functioning away from outdated  karmic designs, bringing about emancipation and soul freedom.

As the camphor is burnt into the fireplace quickly, the sins created by the individual become free from These. There is absolutely no any as a result have to have to discover an auspicious time to begin the accomplishment. But subsequent periods are claimed being Unique for this.

Goddess Tripura Sundari is also depicted being a maiden wearing brilliant scarlet habiliments, dim and very long hair flows and Shodashi is totally adorned with jewels and garlands.

कामाक्षीं कामितानां वितरणचतुरां चेतसा भावयामि ॥७॥

षोडशी महाविद्या : पढ़िये त्रिपुरसुंदरी स्तोत्र संस्कृत में – shodashi stotram

यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।

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